मंगलवार, 11 जून 2019

एक पैगाम बेटी के नाम

बेटी हूं मुझे भी जीने दो....


.



घिन आती है अब,सोच देख इंसान की।
जिस माँ से वह पैदा हुआ,
जिस बहन ने उसको राखी बांधी,
जिस पत्नी से उसने शादी रचाई,
उसी तरह की बेटी पर आज वह ऊँगली उठा रहा है।

नारे लोगों ने बहुत लगाये,
देश के नेता खूब इतराये,
गरीब जनता को खूब लुभाये,
आज जब जरुरत इनकी महसूस हुई,
तब ही इनके भाव बढ़ आये।

आखिर कब तक बेटी सहे यह अत्याचार,
आखिर कब तक करेगी बेटी पुकार,
क्यों इंसान उसे इतना लताड़ता है,
क्यों इंसान उसे इतना दुःख देता है,
क्या यही देखने के लिए बेटी पैदा हुई है,
खुद की बेटी में बेटी और दूसरे की बेटी में न जाने क्या दिखता है।

हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर गले कट रहे हैं,
नन्ही सी जान पर नजर किसी की नहीं है,
कब कोई बनायेगा यह नियम कि,
बुरी नजर से देखने पर आँख फोड़ दी जाए,
गलत काम करने वाले को लटका दिया जाए।

अरे हिन्दू मुस्लिम पर लड़ने वालों,
एक नजर इन लड़कियों पर भी डालो,
धरती में कुछ अच्छे कर्म कर जाओ,
ऊपर वाले ने सबको एक बनाया,
धरती वालों ने बाँट बांटकर आपस में लड़वाया।

छोटी बात को बड़ा मुद्दा बनाने वालों,
एक नजर इन बच्चियों पर भी डालो,
अब कुछ अच्छा करने की बारी है,
क्योंकि एक बेटी की इज्जत हमारी है,
अरे ट्विंकल-अशिफा जैसे बच्चों के गुनाहगारों,
अब मौत की बारी तुम्हारी है।

ये गुस्सा पुरे देश का है,
और देश ही इसको सुलझाएगा,
गाँव- गाँव ,शहर- शहर का हर इंसान,
अब देश की बेटी को बचाएगा।

एक बेटी के बारे में बस इतना नहीं लिखा जा सकता।आज के समाज में जिस तरह से बेटी की इज्जत को उछाला जा रहा है उसको ख़त्म करने के लिए देश की जनता को एक साथ उठना होगा अन्यथा ऐसा भी दिन आ सकता है कि लोगों को लड़की के पैदा होने में दर लगे।

Please share this poem on your social media....शायद किसी के दिमाग में बात आये और किसी के घर की इज्जत की जान बच जाए।
                                         Thanks for visiting


2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Nice 🤘👌👌

बेनामी ने कहा…

Waah

होली मेरे गाँव की

आइये आज मैं ले चलता हूँ आपको एक यात्रा पर... यह यात्रा है मेरे गाँव,मेरी जन्मभूमि *गंगोलीहाट* की ओर। उत्तराखंड राज्य के एक खूबसूरत जिले ...